बीएमसी चुनाव: नितेश राणे के पोस्ट से मुंबई की सियासत में मजहबी बहस तेज

Thu 18-Dec-2025,07:03 PM IST +05:30

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बीएमसी चुनाव: नितेश राणे के पोस्ट से मुंबई की सियासत में मजहबी बहस तेज
  • बीएमसी चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद नितेश राणे के सोशल मीडिया पोस्ट से मुंबई की राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण पर बहस तेज हो गई है।

  • “आई लव मोहम्मद बनाम आई लव महादेव” जैसे नारों पर विपक्ष का आरोप चुनाव से पहले ध्रुवीकरण की कोशिश। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार स्थानीय मुद्दों से हटकर भावनात्मक अपील पर फोकस से चुनावी विमर्श प्रभावित होने की आशंका।

Maharashtra / Mumbai :

मुंबई में बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी तापमान तेज हो गया है। चुनावी रणनीतियों, गठजोड़ और मुद्दों के बीच अब धार्मिक ध्रुवीकरण की बहस भी जोर पकड़ने लगी है। इसी क्रम में महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नितेश राणे के एक सोशल मीडिया पोस्ट ने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। आरोप है कि उन्होंने चुनाव से पहले सियासी मुकाबले को मजहबी रंग देने की कोशिश की है।

सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट में “आई लव मोहम्मद बनाम आई लव महादेव” जैसे नारे उछाले गए, जिसे विपक्ष ने चुनावी ध्रुवीकरण की रणनीति करार दिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीएमसी जैसे स्थानीय निकाय चुनावों में आमतौर पर नगर सेवाएं, बुनियादी ढांचा, जलापूर्ति, कचरा प्रबंधन और सड़कें प्रमुख मुद्दे होते हैं, लेकिन इस बार बयानबाजी का केंद्र बदलता नजर आ रहा है।

विपक्षी दलों ने नितेश राणे के बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंच सकता है। उनका आरोप है कि चुनावी लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं को उकसाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। वहीं सत्तारूढ़ खेमे के समर्थकों का तर्क है कि यह आस्था और सांस्कृतिक पहचान की अभिव्यक्ति है, न कि किसी समुदाय के खिलाफ हमला।

बीएमसी चुनाव मुंबई के लिए बेहद अहम माने जाते हैं क्योंकि यह देश की सबसे अमीर नगरपालिकाओं में से एक है। यहां सत्ता का संतुलन न केवल शहर के प्रशासन, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति पर भी गहरा असर डालता है। ऐसे में हर दल अपनी रणनीति को धार देने में जुटा है,चाहे वह विकास का एजेंडा हो या भावनात्मक अपील।

चुनाव आयोग और प्रशासन की भूमिका भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि आचार संहिता के सख्त पालन से ही चुनावी बहस को मर्यादित रखा जा सकता है। सोशल मीडिया के दौर में बयान और पोस्ट तेजी से फैलते हैं, इसलिए निगरानी और त्वरित कार्रवाई की मांग भी उठ रही है।

कुल मिलाकर, बीएमसी चुनाव की घोषणा के साथ मुंबई की राजनीति में तेज, तीखी और भावनात्मक लड़ाई के संकेत मिल रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि मतदाता विकास बनाम ध्रुवीकरण के बीच किसे प्राथमिकता देते हैं।